बुधवार, 4 जून 2008

धर्म

दंगा पिछले पांच दिनों से जारी था। अर्धसैनिक बलों ने किसी तरह से दंगे पर काबू पाया था।
वे दोनों अपने अपने मजहब के क्षत्रप थे। धर्म रक्षा उनका शगल और पेशा दोनों था। दंगे के दौरान उन दोनों ने दर्जनों को काट डाला था, सैकडों को पीटा और घायल किया।

जब दंगा थम गया, तो पुलिस ने उन दोनों को पकडने के लिए दबिश दी। दोनों को रातों रात भागना पडा। हालाँकि दोनों की बस्तियाँ अलग अलग दिशाओं में थीं, पर दबिश के वक्त वे कस्बे से उत्तर की ओर भागे ताकि जंगल पार करके नदी के उस पार जाया जा सके, जहाँ से दूसरे राज्य की सीमा लगती थी। घुप्प अंधेरे में भागते भागते वे थक कर चूर हो गये पर पीछे से हो रही पुलिस फायरिंग से वे रूकने का साहस नहीं कर पा रहे थे।

जब वे एक दूसरे की टक्कर से गिरे, तो नदी का कछार आ चुका था। बालू ओस की बूंद से भीगी थी। उनकी सांसें बेकाबू थीं। फिरभी उनकी नसों में उबाल आ गया। पर वे इतने थक चुके थे कि उबाल बेमानी था। थोडी देर में वे कछार के बालू पर पडे ही सो गये। सुबह नदी के उस पार से आ रही अजान से उनकी आंख खुली। तभी दूर मंदिर की घंटी बजी। उन्हें होश आ गया। वे झटके से उठे और चाकू निकाल कर एक दूसरे पर टूट पडें। बालू उनके खून से गीली होने लगी थी।